Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Saturday, August 12, 2017

चाहे दरमियाँ दरारें सही! (Ishq Baklol Poetry)


कल देवेन पाण्डेय जी की नॉवेल इश्क़ बकलोल की प्रति मिली। :) किताब का अमेज़न हार्डकॉपी लिंक जल्द ही एक्टिव होगा। उपन्यास शुरू होने से पहले किताब के 2 पन्नो पर मेरी कलम है....


दरिया में तैरती बोतल में बंद खतों की,
पलकों से लड़ी बेहिसाब रातों की,
नम हिना की नदियों में बह रहे हाथों की,
फिर कभी सुनेंगे हालातों की...
...पहले बता तेरी आँखों की मानू या तेरी बातों की?
चाहे दरमियाँ दरारें सही!

ये दिल गिरवी कहीं,
ये शहर मेरा नहीं!
तेरे चेहरे के सहारे...अपना गुज़ारा यहीं। 
जी लेंगे ठोकरों में...चाहे दरमियाँ दरारें सही!

नफ़रत का ध्यान बँटाना जिन आँखों ने सिखाया, 
उनसे मिलने का पल मन ने जाने कितनी दफा दोहराया....
जिस राज़ को मरा समझ समंदर में फेंक दिया,
एक सैलाब उसे घर की चौखट तक ले आया....
फ़िजूल मुद्दों में लिपटी काम की बातें कही,
चाहे दरमियाँ दरारें सही!

किस इंतज़ार में नादान नज़रे पड़ी हैं?
कौन समझाये इन्हें वतन के अंदर भी सरहदें खींची हैं!
आज फिर एक पहर करवटों में बीत गया,
शायद समय पर तेरी यादों को डांटना रह गया।
बड-बड बड-बड करती ये दुनिया जाली,
कभी खाली नहीं बैठता जो...वो अंदर से कितना खाली। 
माना ज़िद की ज़िम्मेदारी एकतरफा रही,
पर ज़िन्दगी काटने को चंद मुलाक़ात काफी नहीं....
ख्वाबों में आते उन गलियों के मोड़,
नींद से जगाता तेरी यादों का शोर। 
मुश्किल नहीं उतारना कोई खुमार,
ध्यान बँटाने को कबसे बैठा जहान तैयार!
और हाँ...एक बात कहनी रह गयी...
काश दरमियाँ दरारें होती नहीं!
==========
#ज़हन

No comments:

Post a Comment