Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Sunday, July 10, 2016

जागते रहो! (हॉरर कहानी)

नील को पता था कि उसे सीवियर स्लीप पैरालिसिस की समस्या थी। इस विकार में कभी-कभी नींद खुलने पर उसका दिमाग कई मिनट जगा रहता था और अपने आस-पास की चीज़ें महसूस करता था पर वह अपनी मर्ज़ी से अपना शरीर नहीं हिला पाता था। ऊपर से सोने पर सुहागा ये कि ऐसी अवस्था में अक्सर उसे भ्रम की स्थिति होती थी। भ्रम और डर में उसे लगता था कि कटे चेहरे वाली बच्ची उसकी छाती पर बैठी अपने नाखूनों से आड़ी-तिरछी रेखाएं बना रही है, बच्ची से नज़र मिलाने पर वह उसके गले के पास तेज़ी से ऐसी रेखाएं बनाने लगती। इतना ही नहीं कभी उसे अपने आस-पास बच्चे खेलते प्रतीत होते तो कभी एक विकृत चेहरे वाली बुढ़िया उसे घूरती। 

फैक्टरी से छुट्टी मिलने पर कुछ दिनों के लिए नील अपने गाँव रोशक गया। एक दिन गर्मी से परेशान होकर वह मकान की छत पर सो गया। 

थोड़ी देर बाद उसकी नींद खुली और उसने खुद को स्लीप पैरालिसिस की स्थिति में पाया। तभी उसे जानी-पहचानी बच्चों की आवाज़ें आने लगीं। उसने आँखें घुमायी तो कुछ बच्चों को आकृतियाँ खेलती दिखीं। पूर्णिमा की रात में एक-दो दिन थे इसलिए नील को चांद की रोशनी में उन बच्चों की परछाई तक दिख रही थी। बच्चों को जैसे ही लगा की नील की आँखें उनकी तरफ हैं वो चिल्लाते हुए उसकी तरफ दौड़े, डर के मारे-पसीने से  लथपथ नील कुछ हिला और बच्चे गायब हो गए। थकान के कारण नील को बहुत तेज़ नींद आ रही थी इसलिए वह फिर सो गया। कुछ समय बाद नींद टूटने पर उसे अपनी गर्दन पर वही जाना-पहचाना कटे चेहरे वाली नन्ही बच्ची का स्पर्श महसूस हुआ। "यह क्या हो रहा है? ऐसा पहले तो नहीं हुआ कभी!" उसने सोचा। 

पहले एक रात में या तो बच्चे या यह बच्ची या विकृत बुढ़िया आती थी पर एक रात में इनमे से 2 कभी नहीं आए। बच्ची अपने रूटीन को अपनाते हुए नील की छाती पर रेखाएं बनाने में लगी थी। न चाहते हुए भी नील की नज़रें बच्ची से मिलीं और गुस्से में वह भूतहा बच्ची नील की गर्दन पर कलाकारी करने लगी। नील ने पूरा ज़ोर लगाकर एक झटके में अपना सर हिलाया, उसकी हरकत से वह बच्ची अपने-आप गायब हो गई और पास रखे ईंटों के ढेर से उसका सिर इतनी तेज़ी से लड़ा कि वह बेहोश हो गया। यह भी पहली बार हुआ था कि नील के शरीर ने स्लीप पैरालिसिस की अवस्था मे कुछ हरकत की थी नहीं तो हमेशा ही उसे कई मिनट तक यह डर झेलना पड़ता था। 

जब बेहोशी से उसे होश आया तो एक बार फिर नील स्लीप पैरालिसिस में जड़ था। उसके दिमाग ने कहा अब बुढ़िया की बारी है। 

"बेटे! ले खा लें आम!"

नील का खून ठंडा पड़ गया, लो आज बुढ़िया बोलने भी लगी। 

"गोलू आम खा..."

बुढ़िया उसकी तरफ आम लेकर बढ़ने लगी, जो अंदर से किसी मानव अंग जैसा लग रहा था। पूर्णिमा सी रोशनी में बुढ़िया का चेहरा और भयावह दिख रहा था जिसमे कीड़े-मकोड़े कुलमुला रहे थे। नील को लगा कि इस बार वह हिलेगा तो फिर ये बला भी गायब हो जायेगी। 

"बेटा आम खा ले...इतने प्यार से खिला रही हूँ। सुनता क्यूँ नहीं तू?"

नील ने पूरी शक्ति जुटाकर करवट ली पर उसे अपनी स्थिति का पता नहीं था कि धीरे-धीरे वह खिसक कर छत के कोने में जा चुका है और वो अपने कच्चे मकान की छत से नीचे आ गिरा। छत से गिरने के कारण नील  की कई हड्डियां टूटी और उसके सिर में चोट आने की वजह से उसको लकवा मार गया। अब सिर्फ उसे दिखने वाले बच्चों का झुंड, चेहरा-कटी बच्ची और बुढ़िया नील को हरदम परेशान करते हैं और वह कुछ नहीं कर पाता। हाँ, अब भी वह उनमे से किसी से भी आँखें मिलाने से बचता है। 

समाप्त!

- मोहित शर्मा जहन

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