Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Friday, November 20, 2015

Kuboolnama (Nazm) - मोहित शर्मा 'ज़हन'


कुबूलनामा (नज़्म)

एक दिलेर कश्ती जो कितने सैलाबों की महावत बनी,
दूजी वो पुरानी नज़्म उसे ज़ख्म दे गयी। 
एक बरसो से घिसट रहा मुकदमा,
दूजी वो पागल बुढ़िया जो हर पेशी हाज़िरी लगाती रही।

मय से ग़म गलाते लोग घर गए,
ग़मो की आंच में तपता वहीँ रह गया साकी,
अपने लहज़े में गलत रास्ते पर बढ़ चले,
.....और रह गया कुछ राहों का हिसाब बाकी।

वीरानों में अक्सर हैरान करती जो घर सी खुशबू ,
आँचल में रखी इनायत घुल रही है परदेसी आबशार में... 
मेरे गुनाह गिनाना शगल है जिसका,
फ़िर भी बैर नहीं करती लिपटी रोटी उस अखबार में। 

रोज़ की शिकायत उनकी, 
बेवजह पुराने सामान ने जगह घेर रखी....
काश अपनी नज़र से उन्हें दिखा पाता,
भारी यादें जमा उन चीज़ों पर धूल के अलावा। 

उलट-सुलट उच्चारण के तेरे मंत्र-आरती चल गए,
रह गए हम प्रकांड पंडित फीके... 
दुनियादारी ने चेहरों को झुलसा दिया,
उनमे उजले लगें नज़र के टीके। 

समाप्त!

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Kubulnama (Nazm)

Ek diler kashti jo kitne sailaabo ki mahavat bani,
Dooji wo purani nazm jo use zakhm de gayi.
Ek barso ghisat raha mukadma,
Dooji wo pagal budhiya jo har peshi haziri lagati rahi.

Mayy se gham galaate log ghar gaye,
Ghamon ki aanch mein tapta wahin reh gaya saaki,
Apne lehze mein galat raaste par badh chale,
.....aur reh gaya kuch raahon ka hisaab baaki.

Veerano mein aksar hairaan karti jo ghar si khushboo,
Aanchal mein rakhi inayat ghul rahi pardesi aabshar mein...
Mere Gunaah ginana shagal hai jiska,
Phir bhi bair nahi karti lipti roti us akhbar mein.

Roz ki shikayat unki,
Bewajah puraane samaan ne jagah gher rakhi....
Kaash apni nazar se unhe dikha paata,
Bhaari yaaden jama un cheezon par dhool ke alawa.

Ulat-sulat uchchharan ke tere mantra-aarti chal gaye,
Reh gaye hum prakaand pandit pheeke...
Duniyadaari mein jhulse chehre,
Unme ujle lage nazar ke teeke....

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 बहुत समय बाद कुछ शायरी की है, वैसे निरंतर कुछ ना कुछ लिख रहा हूँ पर यह ब्लॉग कम अपडेट कर रहा हूँ। वैसे नेट पर मेरा पिछले कुछ महीनो का काफी काम मिलेगा। 
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