Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Thursday, February 16, 2012

भीगी बैसाखी

Jallianwala Bagh Massacre (Amritsar, 13 April 1919)






बड़ा गहरा है तेरा कुआँ....
जो गुम हुई इसमे माँ की दुआ...
खुदगर्जी में तूने अपनी दीवारों को लाल कर डाला...
कितना ज़ालिम है तू ओ जलियांवाला...

खेलते बच्चों को किसने गुमसुम कर डाला,
कितना काला है वो गोरी चमड़ी वाला...

सुबह से खड़े थे वो तो तेरे जवाब सुनने के वास्ते,
शाम तक पट गए लाशो से संकरे रास्ते.


आयेंगे वो दिन उसको यकीन था,
दौड़ी चौखट तक...कोई नहीं था.


ऐसा तो न था मासूमो का विरोध,
जो तेरी 'महारानी' ने उन्हें तोहफे मे दिया बारूद.


कम पड़ रहे थे क्या भीगे जज़्बात,
क्यों पड़ने लगी ये बरसात?


पलके कहाँ झपकेंगी,
देखना है कितनी लम्बी होगी ये रात.


ज़ख़्मी बिछड़े अब कहाँ जायेंगे...
तेरे निजाम के कर्फ्यू मे अपनों से पहले लाशो तक गिद्ध, कुत्ते आयेंगे...


उसके मन मे था ये बैसाखी मेला लेकर आयेगी...
अब से वो अभागी कभी बैसाखी नहीं मनायेगी...


तेरी इबारत मे एक माँ ठगी गयी...
सच को दबाकर अपनी बात को तो साबित कर दिया सही...
अरे..रुक कर देख तेरी एक गोली किसी नन्हे से  दिल को भेद गयी...




- Mohit Sharma (Trendy Baba)

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