Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Thursday, December 23, 2010

मेरे शहर मे हुई सेहर...

हुयी जो रौशनी कम तेरी यादों से नम आँखों मे, 

उसको भी मौसम की धुंध मान लिया...

दरो-दिवार रंगी कालिख से शहर वालो ने,

उसी कालिख से शहर भर मे तेरा नाम लिखा.... 


मिली बरसात ज़मी से तेरी महक लायी,

क़ुदरत भी सीख गयी इंसानों सी रुसवाई. 

देखी हर रस्म सरे-आम पस्त होते हुए, 

कितने ज़हरीले लफ्ज़ ज़ेहन मे पेवस्त होते हुए. 


दिवाली-ईद तन्हाई मे मना ली, 

कोई मिलने आया नहीं तो तेरी याद की जिल्द ख़ुद पर चढ़ा ली! 

मिलने की उम्मीद कभी न छूटी...

वो तो ज़माने की मसखरी से हिम्मत टूटी...


बरसो सिर्फ सपने जो देखे तेरे,

आँखें रोज़ तेरा धोखा दिखाती...तो कैसे मान लूँ की अब तू इतने पास है मेरे? 

तेरे अक्स को खुद मे कहीं कैद रखा था, 

पता नहीं की अब तू सामने है...या तेरा अक्स कैद से रिहा हुआ?

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