Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Saturday, December 11, 2010

साहिल को समीर माना....





मुद्दत से दौड़ा किये जिस जन्नत सी मंजिल की ओर, 
पहुँचने पर एहसास हुआ की सफ़र मे साथ लगी धुल ने उसको बेनूर किया.
और जाना की दस्तूरो ने हमेशा झूठ  कहा.....
रास्ता तो बिन बोले ही धूल बनकर साथ हो लिया....
ओर एक ये मंजिल है जो पास आने पर बहाने बनाती है. 

जिसको रूहानी जान छोड़ी दुनिया सारी, 
उनकी मोहब्बत मे थी दुनियादारी,
आखरी दम तक लड़ने की ख्वाइश मे जाने कहाँ से दरारें आ गयी?
जिसपर नाज़ किया करते थे उस सुर्ख रंग मे कैसे काली बुज़दिली छा गयी?

शायद उस आसमाँ मे फ़रिश्ते अक्सर हमसे बिफरा किये, 
हमसफ़र से हाथ की पकड़ ढीली रखी...फिर भी नसों तक नाखून गड़ गये. 


थम गयी अब रफ़्तार कुछ ऐसे...हम थक गये...
और रुके हुए साहिल को अपना समीर मान बैठे!



मुद्दत से हमने ख्वाबो  को देखना छोड़ दिया, 
कटीली राहों पर हर कदम ने रंगीन निशान छोड़ दिया. 
मंजिलो के सामने मुकद्दर मुकर गया,
ज़माने को साथ लेने के इंतज़ार मे ज़माना ही गुज़र गया.



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